लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
को तैयार हूँ। मेरा
नाम सबसे पहले
लिखा दो। अंधो
को देखकर मेरी
तो अब ऑंखें
फूटती हैं। अब
मुझे मालूम हो
गया कि उसे
जरूर कोई सिध्दि
है; नहीं तो
क्या सुभागी उसके
पीछे यों दौड़ी-दौड़ी फिरती।
भैरों-चक्की पीसेे, तो
बचा को मालूम
हो जाएगा।
ठाकुरदीन-ना भैया,
उसका अकबाल भारी
है, वह कभी
चक्की न पीसेगा,
वहाँ से भी
बेदाग लौट आएगा।
हाँ, गवाही देना
मेरा धारम है,
वह मैं दे
दूँगा। जो आदमी
सिध्दि से दूसरों
को अनभल करे,
उसकी गरदन काट
लेनी चाहिए। न
जाने क्यों भगवान्
संसार में चोरों
और पापियों को
जन्म देते हैं।
यही समझ लो
कि जब से
मेरी चोरी हुई,
कभी नींद-भर
नहीं सोया। नित्य
वही चिंता बनी
रहती है। यही
खटका लगा रहता
है कि कहीं
फिर न वही
नौबत आ जाए।
तुम तो एक
हिसाब से मजे
में रहे कि
रुपये सब मिल
गए, मैं तो
कहीं का न
रहा।
भैरों-तो तुम्हारी
गवाही पक्की रही?
ठाकुरदीन-हाँ, एक
बार नहीं, सौ
बार पक्की। अरे,
मेरा बस चलता,
तो इसे खोदकर
गाड़ देता। यों
मुझसे सीधा कोई
नहीं है, लेकिन
दुष्टों के हक
में मुझसे टेढ़ा
भी कोई नहीं
है। इनको सजा
दिलाने के लिए
मैं झूठी गवाही
देने को भी
तैयार हूँ। मुझे
तो अचरज होता
है कि इस
अंधो को क्या
हो गया। कहाँ
तो धारम-करम
का इतना विचार,
इतना परोपकार, इतना
सदाचार, और कहाँ
यह कुकर्म!
भैरों यहाँ से
जगधार के पास
गया, जो अभी
खेचा बेचकर लौटा
था और धाोती
लेकर नहाने जा
रहा था।
भैरों-तुम भी
मेरे गवाह हो
न?
जगधार-तुम हक-नाहक सूरे
पर मुकदमा चला
रहे हो। सूरे
निरपराधा हैं।
भैरों-कसम खाओगे?
जगधार-हाँ, जो
कसम कहो, खा
जाऊँ। तुमने सुभागी
को अपने घर
से निकाल दिया,
सूरे ने उसे
अपने घर में
जगह दे दी।
नहीं तो अब
तक वह न
जाने किस घाट
लगी होती। जवान
औरत है, सुंदर
है, उसके सैकड़ों
गाहक हैं। सूरे
ने तो उसके
साथ नेकी की
कि उसे कहीं
बहकने नहीं दिया।
अगर तुम फिर
उसे घर में
लाकर रखना चाहो,
और वह उसे
आने न दे,
तुमसे लड़ने पर
तैयार हो जाए,
तब मैं कहूँगा
कि उसका कसूर
है। मैंने अपने
कानों से उसे
सुभागी को समझाते
सुना है। वह
आती ही नहीं,
तो बेचारा क्या
करे?
भैरों समझ गया
कि यह एक
लोटे जल से
प्रसन्न हो जानेवाले
देवता नहीं, इसे
कुछ भेंट करनी
पड़ेगी। उसकी लोभी
प्रकृत्तिा से वह
परिचित था।
बोला-भाई, मुआमला
इज्जत का है।
ऐसी उड़नझाइयाँ न
बताओ। पड़ोसी का
हक बहुत कुछ
होता है; पर
मैं तुमसे बाहर
नहीं हूँ, जो
कुछ दस-बीस
कहो, हाजिर है।
पर गवाही तुम्हें
देनी पड़ेगी।
जगधार-भैरों, मैं बहुत
नीच हूँ, लेकिन
इतना नीच नहीं
कि जान-सुनकर
किसी भले आदमी
को बेकसूर फँसाऊँ।
भैरों ने बिगड़कर
कहा-तो क्या
समझते हो कि
तुम्हारे ही नाम
खुदाई लिख गई
है? जिस बात
को सारा गाँव
कहेगा, उसे एक
तुम न कहोगे,
तो क्या बिगड़
जाएगा? टिवी के
रोके ऑंधी नहीं
रुक सकती।
जगधार-तो भाई,
उसे पीसकर पी
जाओ। मैं कब
कहता हूँ कि
मैं उसे बचा
लूँगा। हाँ, मैं
उसे पीसने में
तुम्हारी मदद न
करूँगा।
भैरों तो उधार
गया, इधार वही
स्वार्थी, लोभी, ईष्यालु, कुटिल
जगधार उसके गवाहों
को फोड़ने का
प्रयत्न करने लगा।
उसे सूरदास से
इतनी भक्ति न
थी, जितनी भैरों
सेर् ईष्या। भैरों
अगर किसी सत्कर्म
में भी उसकी
सहायता माँगता, तो भी
वह इतनी ही
तत्परता से उसकी
उपेक्षा करता।
उसने बजरंगी के पास
जाकर कहा-क्यों
बजरंगी, तुम भी
भैरों की गवाही
कर रहे हो?
बजरंगी-हाँ, जाता
तो हूँ।
जगधार-तुमने अपनी ऑंखों
कुछ देखा है।
बजरंगी-कैसी बातें
करते हो, रोज
की देखता हूँ,
कोई बात छिपी
थोड़े ही है।
जगधार-क्या देखते
हो? यही न
कि सुभागी सूरदास
के झोंपड़े में
रहती है? अगर
कोई एक अनाथ
औरत का पालन
करे, तो बुराई
है?अंधो आदमी
के जीवट का
बखान तो न
करोगे कि जो
काम किसी से
न हो सका,
वह उसने कर
दिखाया, उलटे उससे
और बैर साधाते
हो। जानते हो,
सूरदास उसे घर
से निकाल देगा,
तो उसकी क्या
गत होगी? मुहल्ले
की आबरू पुतलीघर
के मजदूरों के
हाथ बिकेगी। देख
लेना। मेरा कहना
मानो, गवाही-साखी
के फेर में
न पड़ो, भलाई
के बदले बुराई
हो जाएगी। भैरों
तो सुभागी से
इसलिए जल रहा
है कि उसने
उसके चुराए हुए
रुपये सूरदास को
क्यों लौटा दिए।
बस, सारी जलन
इसी की है।
हम बिना जाने-बूझे क्यों
किसी की बुराई
करें? हाँ, गवाही
देने ही जाते
हो, तो पहले
खूब पता लगा
लो कि दोनों
कैसे रहते हैं...
बजरंगी-(जमुनी की तरफ
इशारा करके) इसी
से पूछो, यही
अंतरजामी है, इसी
ने मुझे मजबूर
किया है।
जमुनी-हाँ, किया
तो है, क्या
अब भी दिल
काँप रहा है?
जगधार-अदालत में जाकर
गवाही देना क्या
तुमने हँसी समझ
ली है? गंगाजली
उठानी पड़ती है,
तुलसी-जल लेना
पड़ता है, बेटे
के सिर पर
हाथ रखना पड़ता
है। इसी से
बाल-बच्चेवाले डरते
हैं कि और
कुछ!